ख़ुदा की वापसी - \nप्रतिष्ठित हिन्दी-कथाकार नासिरा शर्मा के इस नये कहानी-संग्रह 'ख़ुदा की वापसी' को दो अर्थों में लिया जा सकता है—एक तो यही कि यह सोच अब जा चुकी है कि पति एक दुनियावी ख़ुदा है और उसके आगे नतमस्तक होना पत्नी का परम धर्म है; और दूसरा है उस ख़ुदा की वापसी, जिसने सभी इन्सानों को बराबर माना और औरत-मर्द को समान अधिकार दिये हैं। संग्रह की कहानियों में ऐसे सवालों के इशारे भी हैं कि जो हमें उपलब्ध है उसे भूलकर हम उन मुद्दों के लिए क्यों लड़ते हैं जिन्हें धर्म, क़ानून, समाज, परिवार ने हमें नहीं दिया है? जो अधिकार हमें मिला है जब उसी को हम अपनी ज़िन्दगी में शामिल नहीं कर पाते और उसके बारे में लापरवाह रहते हैं, तब किस अधिकार और स्वतन्त्रता की अपेक्षा हम ख़ुद से करते हैं? दरअसल 'ख़ुदा की वापसी' की सभी कहानियाँ उन बुनियादी अधिकारों की माँग करती नज़र आती हैं जो वास्तव में महिलाओं को मिले हुए मगर पुरुष समाज के धर्म पण्डित मौलवी मौलिक अधिकारों को भी देने के विरुद्ध हैं।\n'ख़ुदा की वापसी' की कहानियाँ एक समुदाय विशेष की होकर भी विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करती हैं। नारी के संघर्षों और उत्पीड़नों से उपजी विद्रूपताओं तथा अर्थहीन सामाजिक रूढ़ाचार पर तीखी चोट करती ये कहानियाँ समकालीन परिवेश और जीवन की विसंगतियों का प्रखर विश्लेषण भी करती हैं; भाषा और शिल्प के नयेपन सहित, पूरी समझदारी और ईमानदारी के साथ।
नासिरा शर्मा - 1948 में इलाहाबाद (उ. प्र.) में जन्मी नासिरा शर्मा को साहित्य के संस्कार विरासत में मिले। फ़ारसी भाषा साहित्य में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से एम.ए. किया हिन्दी, उर्दू, फारसी, अंग्रेज़ी और पश्तो भाषाओं पर उनकी गहरी पकड़ है। वह ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य, कला और संस्कृति विषयों की विशेषज्ञ हैं। इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, सीरिया तथा भारत के राजनीतिज्ञों तथा प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों के साथ साक्षात्कार किये जो बहुचर्चित हुए। युद्ध बन्दियों पर जर्मन व फ्रांसीसी दूरदर्शन के लिए बनी फ़िल्म में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। साथ ही साथ स्वतन्त्र पत्रकारिता में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उपन्यास बहिश्ते-ज़हरा, शाल्मली, ठीकरे की मंगनी, ज़िन्दा मुहावरे, अक्षयवट, कुइयाँजान, ज़ीरो रोड, पारिजात, काग़ज की नाव, अजनबी जजीरा, शब्द पखेरू, दूसरी जन्नत, कहानी संग्रह शामी काग़ज़, पत्थरगली, इब्ने मरियम, संगसार, सबीना के चालीस चोर, ख़ुदा की वापसी, दूसरा ताजमहल, इन्सानी नस्ल, बुतख़ाना, रिपोर्ताज़ - जहाँ फौव्वारे लहू रोते हैं; संस्मरण यादों के गलियारे; लेख संग्रह किताब के बहाने, राष्ट्र और मुसलमान, औरत के लिए औरत, औरत की आवाज़, औरत की दुनिया; अध्ययन अफ़ग़ानिस्तान बुज़क़शी का मैदान, मरजीना का देश इराक़ अनुवाद : शाहनामा-ए-फ़िरदौसी, काइकोज आफ़ इरानियन रेवुलूशन : प्रोटेस्ट पोयट्री, बर्निंग पायर, काली छोटी मछली (समदबहुरंगी की कहानियाँ); इसके अलावा 6 खण्डों में अफ्रो-एशिया की चुनी हुई रचनाएँ, निजामी गंजवी, अत्तार, मौलाना रूमी की चुनी हुई मसनवियों और 'क़िस्सा जाम का' (खुरासान की लोककथाएँ) का अनुवाद; नाटक पत्थर गली, सबीना के चालीस चोर, दहलीज़, इब्ने मरियम, प्लेटफार्म नम्बर सात; बाल साहित्य : भूतों का मैकडोनल, दिल्लू दीमक (उपन्यास), दर्द का रिश्ता, गुल्लू, नवसाक्षरों के लिए धन्यवाद धन्यवाद, पढ़ने का हक़, गिल्लो बी, सच्ची सहेली, एक थी सुल्ताना, टी.वी. फ़िल्म व सीरियल : तड़प, माँ काली मोहिनी, आया वसंत सखी, सेमल का दरख्त (टेलीफ़िल्म), शाल्मली, दो बहनें, वापसी (सीरियल)।
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